कामुकता : एक गंभीर समस्या
आज के युग में, जहाँ काम का खुलेआम प्रदर्शन हो रहा है, पूरा मानव वर्ग इस समस्या से ग्रस्त है. विशेषकर साधक, जो अध्यात्म का अभ्यास कर रहे हैं, उनके लिए तो यह एक गंभीर समस्या है. उनके मार्ग का तो यह एक सबसे बड़ा रोड़ा है जो उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है. इस विषय पर ध्यान में मुझे जो intuition मिला, वह इस प्रकार है :-
किसी भी समस्या से अगर निकलना हो तो सबसे पहले उस समस्या को समझने की कोशिश करो. सही समझ ही सही निदान है. बिना समझे अगर आप किसी समस्या से निकलना चाहते हो तो कितना भी उपाय कर लो, नहीं निकल पाओगे, अपितु और बुरी तरह से उसमें उलझोगे. तो आएँ, सबसे पहले इसे समझते हैं.
कामुकता से पहले काम को समझना ज़रूरी है. काम क्या है? काम शरीर की एक आवश्यक आवश्यकता है, जैसे रोटी-पानी. जैसे शरीर की भूख-प्यास रोटी-पानी से मिटती है, उसी तरह काम से शरीर की कुछ आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ती होती है. रोटी-पानी से शरीर में रक्त बनता है और रक्त से वीर्य. वीर्य उर्जा का एक स्थूल रूप है, अतः यह उर्जावान रहता है. उर्जा का स्वाभाव है, प्रवाहित होना, अतः इसे रास्ता चाहिए. काम एक नैसर्गिक व्यवस्था है प्रकृति की, इसके द्वारा यह वीर्य गतिमान हो जाता है, और विपरीत लिंगी के साथ मिलकर एक नये शरीर का निर्माण करता है. यह उर्जा का एक आदान-प्रदान है, जिससे दोनों शरीर अंदर से परिष्कृत होकर निखर जाता है. काम जब तक यह आवश्यकता पूरी करता है तब तक यह बुरा नहीं है, और इसकी अनुमति हमारे शास्त्र-पुराण, ऋषि-मुनियों ने विवाह के रूप में दी है.
काम एक आकर्षण है, विपरीत लिंगी के प्रति, परंतु जब तक यह शरीर में है, यह बुरा नहीं है, क्योंकि यह प्रकृति का काम कर रहा है, परंतु जब यह शरीर से मन में आ जाता है तब यह भूख-प्यास बन जाता है और जैसे मृत्यु-पर्यंत शरीर को रोटी-पानी की ज़रूरत पड़ती है, उसी तरह इसकी प्यास मृत्यु-पर्यंत बनी रहती है. मन की यह अवस्था कामुकता कहलाती है. मन एक माध्यम है, जिससे उर्जा प्रवाहित होती है. अगर यह प्रवाह शरीर की तरफ है तो यह कामुकता है, और अगर यह आत्मा की तरफ है तो आध्यात्मिकता है.
अब प्रश्न है की इस प्रवाह को कैसे मोड़ा जाय? आज के युग में शरीर का इतना प्रदर्शन है कि मन अनायास शरीर की तरफ बहने लगता है, और यह प्रवाह इतना प्रबल है कि इसे मोड़ना हाथी को वश में करने जैसा है. कुछ लोग योग करते हैं, ध्यान करते हैं, तरह-तरह की विधियों का प्रयोग करते हैं, परंतु इसे मोड़ने में सफल नहीं हो पाते हैं. जितना उपर की तरफ मोडते हैं, उतना नीचे की तरफ चले जाते हैं.
मेरा intuition कहता है, दो विरोधों के बीच में ठहर जाओ. गति को रोक दो. उपर जाने का प्रयास ही छोड़ दो. अपने आप को बीच में रखो, और ठहर जाओ. तुम अगर उपर जाने का प्रयास छोड़ दोगे तो नीचे जाने की नौबत ही नहीं आएगी, और तुम्हें वह मध्य-बिंदु मिल जाएगा, जो साधना का एकमात्र उद्देश्य है. उसी को कृष्ण ने स्थित-प्रज्ञ कहा है, उसे सभी महापुरुषों ने अलग-अलग ढंग से कहा है. मैं ऐसे साधक को Intuitive कहता हूँ.
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